विजय भाई की शादी हो गई। सबने बधाई भी दे दी । हम बड़े पशोपेश में थे कि भई
कुछ कहें या चुप लगाएं । सोच विचार के बाद इस नतीजे पर पहुँचे कि माना नई
मुलाकात है पर बधाीई तो बनती ही है । फिर सोचा कि बधाई के सगं ई-लिफाफा
भी भेज दें तो शायद ज्यादा याद रखेंगे । रूपये उनके लिए बेकार है और डालर
अपने पास है नहीं । इसलिए उनके फोरसड बैचलरहुड के गम को कम करने के
लिए यह रचना भेज रहे है। -------
शादी का नगाड़ा जो किसी ने बजाया
एक अदद टट्टू की घोड़ी को सजाया
बेसाख्ता ही मुझको वो समय याद आया
शादी की बलिवेदी जब गया मैं बिठाया
पत्नी पाई फूल सी तो मैं हुया निहाल
झपकते पलक बीत गया पहला सुखद साल
अगामी दिनों ने किया पर वो हाल
हो गई आड़ी तिरछी मेरी सीधी साधी चाल
फूल के फूल हुय़ा गोभी का फूल
मेरे सारे खर्चे उसे लगने लगे फिज़ूल
उसने कर ली जेब से चवन्नी तक वसूल
दोस्तों की महफिलें हाय गया मैं भूल
देर से अक्सर मैं दफ़तर को जाता
रोज़ सुबह बोस की फटकार खाता
बीवी और माँ का मुकद्दमा निपटता
रात भर जाग कर मुन्ने को टहलाता
कलास दर कलास बच्चे चढ़ते गए
परवरिश में खर्चे उनके बड़ते गए
चँदिया के बाल सारे झड़ते गए
करनी थी अपनी तो भरते गए
काश मालिक सेब का पौधा न बोता
ईव को देख एडम आपा न खोता
किस्सा हुस्नो-इश्क का अगर ये न होता
मस्त कहीं मैं भी चैन की नींद सोता ।।
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10 comments:
बहुत ही बढियॉ लिखा है सुहास जी, पर ये तो बधाई से ज्यादा चेतावनी लग रही है। अब पछताये होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत। विजय भाई भी अब हलाल हुए मुर्गे हैं।
हाय, क्या हाल सुनाया है। बहुत अच्छी कविता बनाई है आपने।
वाह टिक्कू जी
क्या खूब चित्रण किया है बहुत अच्छा लिखा है। पर यार विजय भाई को डरा दिया तुमने।
ये तो आपने हमारा भी हाल बयाँ कर दिया अत्यंत सच्चे लफ़्जों में:)
बहुत बढिया सुहास भाई, पढ़ कर मज़ा आ गया। अच्छा रहा आपने हमें पहले ही सावधान कर दिया। :-)
:)
बहुत अच्छा लिखा है।
समीर लाल
कविता बहुत अच्छी बनाई है, मुझे हंसी भी आई के अगर ये कविता किसी की शादी में माईक पर पढ दी जाए तो बडा मज़ा आता ;)
जिस प्रकार किसी समारोह कि शुरूआत राष्ट्रगीत से होती हैं वैसे ही हर शादी से पुर्व इस कविता को गाया जाना चाहिए.
धन्यवाद ।
धन्यवाद भाई गप्पू जी,
आपकी चेतावनी हमेशा सहेज के रखेंगे.
हमने अपने दिल का हाल लिख दिया है, जरा उस पर भी नजर-ए-इनायत हो जाय.
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