Friday, May 12, 2006

तबियत अभी रंगीली

पड़ी जो उन पर इक नज़र
हम ठगे देखते रह गए
किसी चिंतन में बह गए
दिल में उठे ख्यालों को
बरबस आँखों से कह गए

पैगाम हमारा उधर गया
पर इच्छा हुई न पूरी
रह गई आस अधूरी
आखिर कैसे मन की पाते
हाय ,उमर की थी मजबूरी

नाइन्साफ़ी किस कद़र
रंगत पड़ी है पीली
खाल हुई कुछ ढीली
तन से हम क्यों गए बुढ़ाह
जब तबियत अभी रंगीली ।।

6 comments:

Jitendra Chaudhary said...

बहुत सुन्दर, मजा आ गया,
ऐसे ही तबियत रंगीली बनाए रखिए।
आपके स्वागत के लिये लोग इन्तजार कर रहे है।

Udan Tashtari said...

स्वागत है,सुहास जी,हिन्दी चिठ्ठाजगत मे।

समीर लाल

ई-छाया said...

सुहास जी
स्वागत है स्वागत है स्वागत है.

Kaul said...

सुहास तिकू जी, हिन्दी ब्लॉगजगत में आप का स्वागत है।

Pratik Pandey said...

सुहास जी, हिन्दी ब्लॉग जगत् में हमारी तरफ़ से भी आपका हार्दिक अभिनन्द। आशा है कि गप्प-सड़ाका यूं ही जारी रहेगा और आपकी तबियत भी ऐसे ही‍ नित रंगीन बनी रहेगी। :-)

Basera said...

धांसू लिखा है। आपका स्वागत है।