पड़ी जो उन पर इक नज़र
हम ठगे देखते रह गए
किसी चिंतन में बह गए
दिल में उठे ख्यालों को
बरबस आँखों से कह गए
पैगाम हमारा उधर गया
पर इच्छा हुई न पूरी
रह गई आस अधूरी
आखिर कैसे मन की पाते
हाय ,उमर की थी मजबूरी
नाइन्साफ़ी किस कद़र
रंगत पड़ी है पीली
खाल हुई कुछ ढीली
तन से हम क्यों गए बुढ़ाह
जब तबियत अभी रंगीली ।।
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6 comments:
बहुत सुन्दर, मजा आ गया,
ऐसे ही तबियत रंगीली बनाए रखिए।
आपके स्वागत के लिये लोग इन्तजार कर रहे है।
स्वागत है,सुहास जी,हिन्दी चिठ्ठाजगत मे।
समीर लाल
सुहास जी
स्वागत है स्वागत है स्वागत है.
सुहास तिकू जी, हिन्दी ब्लॉगजगत में आप का स्वागत है।
सुहास जी, हिन्दी ब्लॉग जगत् में हमारी तरफ़ से भी आपका हार्दिक अभिनन्द। आशा है कि गप्प-सड़ाका यूं ही जारी रहेगा और आपकी तबियत भी ऐसे ही नित रंगीन बनी रहेगी। :-)
धांसू लिखा है। आपका स्वागत है।
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